में विसर्जन नहीं चाहता मां, तुम्हे नौ दिन पुज कर दुनिया भर का ग़म नहीं चाहता मां...
में विसर्जन नहीं चाहता मां,
तुम्हे नौ दिन पुज कर दुनिया भर का ग़म नहीं चाहता मां...
तुम सबको शक्ति संपन्न बनाती हो,
तुमसे दूर होकर विपन्न बनना नहीं चाहता मां....
उजियारा दिया है मेरी जिंदगी में तुमने,असंख्य आकर्षणों का तेज दिया मेरी जिंदगी में तुमने,
नौ दिन निरंतर जयकारे लगाते हुवे,निशब्द नहीं होना चाहता मां...
कैसी विदाई है ये, कैसी घड़ी आई है ये,
पुरुषों के पौरुष में औपचारिकता समाई है ये,
जिसने वीर शिवा का तलवारों से राजतिलक किया,
उस मां की संताने कैसी आई है ये,,
में तुम्हे दिल, दिमाग और परंपराओं में भी विदाई नहीं देना चाहता मां....
हमारी संस्कृति में मां को पूजना लिखा है,
ये विसर्जन कब से आ गया..?
युगों युगों की अखंड परम्परा में पाश्चात्य का अंधानुकरण कब से आ गया..?
जय भवानी के उदघोष पर दुश्मन के नर मुंड काटने वालों की संतानों की नस नस में पानी कब से आ गया...?
अपनी मां को पूज कर,धक्का देने वाला विसर्जन नहीं चाहता मां...
मैं तुमको विदाई देकर दूर होना नहीं चाहता मां....
मेरे जीवन की पालना करने वाली जननी और जग जननी को खोना नहीं चाहता मां.....
आरक्षक सौदागर जाट पुलिस थाना इंगोरिया जिला उज्जैन की कलम से